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Monday, May 2, 2011

.....क्योंकि बहुत कुछ यहाँ 'फालतू' ही है.

एक नई फिल्म देखी, नाम है 'फालतू'.इस फिल्म में युवाओं को पढाई फालतू लगती है.फिल्म में ज्यादातर गाने फालतू में डाले गये है.एक्टिंग और निर्देशन दोनों फालतू टाईप के है.ऐसे निर्माता निर्देशकों को लगता है कि दर्शकों के पास बहुत सारा फालतू का समय और पैसा है.पर आजकल और भी बहुत कुछ फालतू का हो रहा है और माना जा रहा है.

आजकल सरकार को आए दिन अलग अलग माँगों के लिए होने वाले प्रदर्शन और बंद फालतू के लग रहे है वहीं जनता को सरकार की आपत्तियाँ फालतू लग रही है.नक्सलियों और माओवादियों को पूरा लोकतंत्र ही फालतू का लग रहा है.आतंकवादियों को इंसान फालतू नजर आते है वहीं आत्महत्या करने वालों को अपना जीवन ही फालतू नजर आता है.

महिलाओं को लगता है कि उन पर पुरूषों ने कई प्रतिबंध फालतू के लगा दिये है जिन पर वो सवाल उठा रही है वहीं पुरुषों को इनके सारे सवाल ही फालतू के नजर आ रहे है.

गभीर लिखने वालों को हल्का फुल्का लेखन फालतू लगता है वही हल्का फुल्का लिखने वालों को लगता है जब सरल भाषा में समझाया जा सकता है तो फालतू में गंभीर क्यों लिखे.युवाओं को तो हिंदी भाषा भी फालतू की लगने लगी है. तो बच्चों को ईमानदारी और सादगी की सीख ही फालतू लगती है.

कुछ लोगों को हेलमेट पहनने का नियम फालतू लगता है तो कहीं बिगडेल नशेडी अमीरजादों को कार ड्राइव करते समय फुटपाथ पर सोये हुए गरीब ही फालतू नजर आते है .पुलिस वालों को जनता की कंपलेन फालतू नजर आती है.कई लोग जिन्हें अपने शरीर की चर्बी फालतू नजर आती है जिम जाते है तो कईयों को जीभ पर कंट्रोल करना फालतू लगता है,खा खा के इनकी हालत ऐसी हो गई है कि आधी सडक फालतू में घेर के चलते है कल को हो सकता है पीठ पर एक तख्ती लगानी पडे-जगह मिलने पर ही साइड दी जाएगी.

मेरे दादाजी को अखबार में विज्ञापन फालतू लगते है तो दादीजी को राशिफल के कॉलम के अलावा पूरा अखबार ही फालतू लगता है.वृद्धाश्रमों की बढती संख्या और बागबान जैसी फिल्में देखकर तो लगता है औलादों को अपने बुजुर्ग माँ बाप भी फालतू लगने लगे है.तो कई लोगों को बेटियों को पढाना ही फालतू लगता है.

यहाँ ब्लॉगिंग में भी कई लोग धर्म के नाम पर झगड रहे है वही कईयों को लगता है कि ये झगडे ही फालतू के है इनसे दूर रहा जाए जबकि इन झगडने वालों को लगता है जो हमारे बीच बोल ही नहीं रहा वो ब्लॉगर ही फालतू का है.लीजिए हमने भी एक फालतू की चेप ही दी.इसे झेल जाइये.

7 comments:

anshumala said...

नहीं राजन जी पोस्ट तो फालतू की नहीं है :)

हम सभी को अपने मतलब के बात के आलावा सब फालतू ही लगता है जो आट६ हमे पसंद नहीं है आवो सब फालतू है जो हमारे मन की नहीं कहा रहा कर रहा वो भी हमारे लिए फालतू है दुसरे का कम हमारे मतलब का नहीं है या हमें पसंद नहीं आया तो वो भी फालतू ही है जैसे बनाने वालो ने फिल्म कितने मेहनत से बनाई होगी अच्छी सोच कर ही बनाई होगी पर आप को तो फालतू लगी ना बस ऐसे ही सभी को कुछ ना कुछ फालतू लगता है |

आप को गाने भले ना अच्छे लगे हो पर मेरी बेटी को बड़ा पसंद है " पार्टी अभी बाकि है " |

राजन said...

अंशुमाला जी,आप सोचती बडे ही प्रेक्टिकल तरीके से है अब देखिये न मैंने ये तो सोचा ही नहीं कि फिल्म बनाने वाले ने तो अपनी तरफ से अच्छी ही बनाई होगी लेकिन हाँ गाने मुझे ठीक ठाक लगे पर इनके बारे में मैं कह रहा था कि ये फिल्म में जबरदस्ती डाले गये है और ये उस तरीके से सिचुएशनल नहीं है जैसे कि घई या भंसाली की फिल्मों में होते है.

शोभना चौरे said...

मुझे आपकी यह पोस्ट बिलकुल भी फालतू नहीं लगी |बड़ी काम की लगी |

राजन said...

shukriya shobhna ji

मीनाक्षी said...

याद नहीं कि पहले यहाँ आई हूँ ... लेकिन यह पोस्ट तो बिल्कुल फालतू नहीं है... ऊपर वाली पोस्ट भी जबरदस्त...आजकल बेटे के साथ अपने उसके ज़माने की बातें खूब होती है...मन हल्का हो गया.. शुक्रिया और शुभकामनाएँ

राजन said...

Swagat hai minakshi ji

चंदन कुमार मिश्र said...

प्रवीण जी के ब्लाग पर आपकी टिप्पणी से यहाँ आया। बहुत बहुत धन्यवाद अपने समूह के लोगों की चिन्ता करने के लिए। …यह पोस्ट अच्छी लगी। फालतू को आपने आलतू बना दिया है।